Karma Puja 2024: त्योहार जीवन की खुशियों को मनाने और आपसी बंधनों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज इस पोस्ट में आप पढ़ने जा रहे है करमा पूजा के बारे में –
कर्मा पूजा का परिचय || Introduction to Karma Puja
Karma Puja 2024
झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है करमा, जिसे आदिवासी और सदान मिल-जुलकर सदियों से मनाते आ रहे हैं। मान्यता के अनुसार करमा पर्व के अवसर पर बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु एवं मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं। यह सर्वविदित है कि जनजातियों ने जिन परंपराओं एवं संस्कृति को जन्म दिया, सजाया-सँवारा, उन सबों में नृत्य, गीत और संगीत का परिवेश प्रमुख है।
2023 में कर्मा पूजा कब है ? || when is karma puja in 2023 ?
Karma Puja 2023: इस साल करमा पर्व 25 सितंबर सोमवार को है। करमा पर्व झारखंड के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और काफी लोकप्रिय है। यह पर्व सिर्फ झारखंड में ही नहीं मनाया जाता बल्कि बंगाल, असम, ओड़िशा, तथा छत्तीसगढ़ में भी पूरे हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य है बहनों द्वारा भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना की जाती है। झारखंड के लोगों की परंपरा रही है कि धान की रोपाई होजाने के बाद यह पर्व मनाया जाता रहा है।
करमा पूजा कब मनाया जाता है ? || When Karma Puja is Celebrated ?
यह पर्व सितंबर के आसपास भादो शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे भादों एकादशी भी कहते हैं। जनजातीय समुदाय खेती-बारी के कार्यों की समाप्ति के बाद इसे हर्षोल्लास के साथ मनाता है। इस पर्व के अनेक रूप हैं, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न- भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। जैसे-जितिया करम, दसई करम, राजी करम आदि। इस मौके पर पूजा करके आदिवासी अच्छे फसल की कामना करते हैं। साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती है। करमा के अवसर पर पूजा प्रक्रिया पूरा होने के बाद झारखंड के आदिवासी मूलवासी ढोल मांदर और नगाड़ा के थाप पर झूमते है एवं सामूहिक नृत्य करते हैं। यह पर्व सभी लोगों के लिए परंपरा की रक्षा के साथ-साथ मनोरंजन का भी एक अच्छा साधन है जहां पुरुष रात में पेय पदार्थों का सेवन कर पूरी रात नाचते गाते हैं और यह दृश्य देखना भी आंखों को सुकून देती है।
कर्मा पूजा कहाँ-कहाँ मनाया जाता है ? || Where is Karma Puja celebrated?
यह पर्व झारखंड के साथ-साथ अन्य राज्यों से छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश उड़ीसा एवं बंगाल के आदिवासियों द्वारा भी धूमधाम से मनाया जाता है। इनमें राजी करम सभी स्थानों पर एक ही साथ निश्चित तिथि अर्थात् भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि मुख्यतः खुखरा परगना में मनाया जाता है। राँची के पश्चिम में दसई करम तथा कसमार परगना में सोहराई करम के नाम से मनाया जाता है। राज्य के पश्चिम क्षेत्र में करम मनाने के विधि-विधान में थोड़ा-बहुत अंतर पाया जाता है, लेकिन उसका मतलब एक सा ही होता है। करम मुख्यतः सदान, मुंडा, संताल, के बीच करम देवता के रूप में आस्था के प्रतीक हैं।
कर्म फेस्टिवल के दौरान की जाने वाली पूजा विधि || Rituals to be performed during Karma Festival
इस त्यौहार की समय लोग अपने घरों के आंगन की साफ सफाई करते हैं। साफ सफाई करने के बाद बहुत ही विधि पूर्वक कर्म डाली को आंगन में गाड़ देते हैं। इसके बाद उस स्थान पर गोबर से लीपा जाता है क्योंकि गोबर से लीपना शुभ माना जाता है। इसके पश्चात बहने सजी हुई टोकरी तथा थाली लेकर पूजा करने के लिए आंगन के चारों तरफ कर्म राजा (कर्म वृक्ष की डाली) की पूजा करने के लिए बैठ जाती हैं। कर्म राजा की पूजा करते समय वह अपने भाइयों की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं। कर्म पूजा बड़े बुजुर्गों की तरफ से कराई जाती है, इस पूजा की समाप्ति के बादकर्म कथा सुनाई जाती है।
कर्म फेस्टिवल के दौरान गाए जाने वाले गीत || Songs sung during Karma Festival
कर्म फेस्टिवल के दौरान विशेष गीत गाए जाते हैं, जिन्हें की करमजीत कहा जाता है।यह गीत बारिश शुरू होने के साथ शुरू कर दिए जाते हैं और उस समय तक गाए जाते हैं जब तक फसल नहीं कट जाती। कर्म गीत के दौरान बहुत ही सुंदर संबोधन ओं का इस्तेमाल किया जाता है।लोग एक दूसरे का नाम नहीं लेते बल्कि अलग-अलग प्यार भरे शब्दों का इस्तेमाल करके एक दूसरे को बुलाते हैं। गीत गाते समय मंदिर तथा ढोल आदि बजाए जाते हैं, मंदिर बजते ही सारे लोग एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं और नाचना शुरू कर देते हैं।झारखंड में कर्म गीत और नृत्य को जिस जगह पर शुरू किया जाता है, उस जगह को अंखरा कहा जाता है।
कर्मा पूजा मानाने के पीछे की कहानी ( पहली कहानी ) // कर्मा पूजा की इतिहास || The story behind celebrating Karma Puja (first story) // History of Karma Puja
करमा और धरमा दो सगे भाई थे। करमा बड़ा था और धरमा छोटा। दोनों अलग-अलग मनोवृत्तियोंवाले थे। करमा कठोर मेहनत, समय की बचत और धन की बचत पर विश्वास रखता था। उसका मुख्य पेशा व्यापार था, जबकि धरमा प्रेम, विनम्रता, पूजा, धर्म, नैतिकता, सरलता, सामूहिकता पर विश्वास करता था।
उसका मुख्य पेशा कृषि था। एक बार करमा व्यापार के सिलसिले में विदेश चला गया। व्यापार से उसने काफी धन अर्जित किया। फलतः वह घमंडी हो गया और अपने-आप को ताकतवर महसूस करने लगा। तब विदेश से वह अपने गाँव-घर के लिए रवाना हुआ। अपार संपत्ति अर्जित करने के बाद वह अपने गाँव की सीमा पर अपने सहयोगियों के साथ विश्राम करने लगा। उसने अपने भाई धरमा को आने की सूचना दी, ताकि गाँव की परिपाटी के अनुसार उसके स्वागत के लिए उसका भाई सीमा पर पहुँचे, परंतु छोटा भाई धरमा उस समय अपने परिवार और गाँव के लोगों के साथ पूजा-अर्चना में मशगूल था। अत: वह अपने भाई का स्वागत करने के लिए समयानुसार वहाँ पहुँच नहीं सका। इस पर करमा आग-बबूला हो गया और गुर्राता हुआ वह अपने घर पहुँचा। उसने धरमा के पूजा स्थल को नष्ट कर दिया और करम राजा को उखाड़ कर फेंकना चाहा।
भाई धरमा तथा गाँव के लोगों द्वारा करजोरी-विनती करने के बावजूद करमा ने करम देवता को उखाड़ कर फेंक दिया। उसके इस व्यवहार से गाँव के लोग बहुत दुःखी हुए और रोने-चिल्लाने लगे, विलाप करने लगे। इसके बाद करमा पुनः गाँव की सीमा पर पहुँचा, जहाँ उसकी कमाई हुई धन-संपत्ति रखी थी । वहाँ वह यह देखकर चकित रह गया कि उसकी पूरी संपत्ति गायब थी। यह देखकर वह निराश और दुःखी मन से संपत्ति की खोज करने लगा। संपत्ति नहीं मिलने पर उसने अपने सहयोगियों से सलाह माँगी। उन्होंने उसे करम राजा की पूजा-आराधना करने की सलाह दी। चूँकि वह करम राजा के निवास स्थान से परिचित नहीं था, इसलिए उसे सात समुंदर पार जाकर करम राजा को लाने को कहा गया। करमा करम देवता की खोज में निकल पड़ा। रास्ते में उसे जोरों की प्यास लगी। वह पानी पीने के लिए तालाब पर पहुँचा तो उसके पानी में कीड़े भरे हुए थे। इसलिए वह पानी भी नहीं पी सका। उसे भूख लगी तो वह एक गूलर के पेड़ के पास गया, लेकिन गूलर के सभी फलों में कीड़े कुलबुला रहे थे।
अतः वह फल भी नहीं खा सका। वह आगे बढ़ा तो देखा कि एक गाय अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। उसने गाय को अपना दुखड़ा सुनाया तो गाय ने उसे दूध पीने की अनुमति दे दी, लेकिन जब वह गाय को दुहने लगा तो उसके थन से दूध के बदले खून गिरने लगा। इससे वह दूध भी पी नहीं सका। आगे बढ़ने पर उसने देखा कि एक महिला चूड़ा कूट रही है। वह उसके पास पहुँचकर उसे बताया कि वह भूख से परेशान है। तब महिला ने उसे चूड़ा खाने को दिया, लेकिन चूड़े में कंकड़ और धूल ऐसे भरे पड़े थे कि वह खा नहीं सका। वहाँ से वह आगे बढ़ा तो उसे एक घोड़ा दिखाई पड़ा। उसने घोड़े से अपनी परेशानी बता कर मदद माँगी, लेकिन घोड़ा भी वहाँ से भाग निकला। हताश निराश होकर वह आगे बढ़ा तो एक नदी मिली । नदी के बीचोबीच एक मगरमच्छ आ गया। उसने करमा को अपनी पीठ पर बैठा कर करम देव के पास पहुँचा दिया। करम देवता उसको परीक्षा में सफल देखकर प्रसन्न हो उठे और उन्होंने वरदान दे दिया। साथ ही करम डाली की पूजा करने की सलाह दी। वहीं से करम देव की पूजा शुरू हो गई ।
कर्मा पूजा मानाने के पीछे की कहानी ( दूसरी कहानी ) // कर्मा पूजा की इतिहास || The story behind celebrating Karma Puja (Second story) // History of Karma Puja
कहा जाता है कि करमा-धरमा दो भाई थे। दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे कुछ दिनों बाद करमा की शादी हो गई उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी। यहां तक कि धरती मां के पीड़ा से बहुत दुखी था। और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया उसके जाते ही सभी के कर्म किस्मत भाग्य भी चला गया और वहां के लोग दुखी हो गए और धरमा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गई आसपास कहीं पानी नहीं था। दूर एक नदी दिखाई दिया वहां जाने पर देखा कि उसमें पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा जबसे आपके भाई यहां से गए हैं तब से हमारा कर्म फूट गया है, यहां तक की पेड़ के सारे फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं अगर वे मिले तो उनसे कह दीजिएगा और उनसे उपाय पूछ कर बताइएगा। धर्मा वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला उन्होंने बताया कि जब से करमा यहां से गया है, उनके सर के बोझ तब तक नहीं उतरते हैं जब तक तीन चार लोग मिलकर ना उतारे। ये बात करमा से कहकर निवारण के उपाय बताना, धर्मा वहां से भी बढ़ गया।
आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई कि जब से वे गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं, इसके लिए क्या उपाय हैं, आप करमा से पूछ कर बताना। धरमा आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा, वहां उसने देखा कि करमा धूप गर्मी से परेशान हैं उसके शरीर पर फोड़े फुंसी पड़े हैं, और वह व्याकुल हो रहा है। धरमा से उसकी हालत देखी ना जा रही थी। उसने करमा से आग्रह किया कि हुआ घर वापस चले तो कर्मा ने कहा कि मैं उस घर कैसे जाऊं जहां पर मेरी पत्नी जमीन पर माड़ फेंक देती है तब धर्मा ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी महीना जमीन पर माड़ नहीं फेकेगीं, फिर दोनों भाई वापस चले तो उस सबसे पहले वो महिला मिली तो उससे करमा ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ, आगे अंत में नदी मिला तो करमा ने कहा तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया, आगे किसी को गंदा पानी मत पिलाना आगे कभी ऐसा मत करना, तुम्हारे पास कोई आए तो साफ पानी पिलाना। इसी प्रकार उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में करम का डाल लगाकर पूजा किया। इसके बाद पूरे इलाके में लोग फिर से खुशी से जीने लगे और फिर से खुशहाली लौट आई उसी को याद कर आज करमा पर्व मनाया जाता है।
राइज करमा के बारे में || About Rise Karma
असुर जनजाति भी इसे भादो शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाते हैं। असुर करम वृक्ष की डाली को अखरा में लाकर गाड़ते नहीं हैं। यदि गाँव के दूसरे समुदाय के लोग करम की डाली लाकर गाड़ते हैं तो ये उनके साथ नाच-गाने में शामिल हो जाते हैं। रात्रि के नाच-गाने के बाद सुबह प्रत्येक घर से एक सदस्य कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चला जाता है, जहाँ से चिरचिठी तथा भेलवा की पत्ती काटकर खेतों में ले जाया जाता है। चिरचिठी को एक तरफ नुकीला बनाया जाता है तथा दूसरी तरफ इसे फाड़कर भेलवा की पत्तियों को डाल दिया जाता है। इस प्रकार के लट्ठों को प्रत्येक खेत में गाड़ा जाता है। असुर जनजाति में यह विश्वास है कि ऐसा करने से लोगों की नजरें फसलों पर नहीं लगती हैं, जिसके कारण फसलें सुरक्षित रहती हैं। घरों में भी भेलवा की पत्ती छत्तों पर लाकर रखी जाती है। खेतों में चिरचिठी के लट्ठों को गाड़नेवाला व्यक्ति स्नान करके ही घर में प्रवेश करता है। दरवाजे पर घर की महिलाएँ उसे लोटा में पानी देती हैं और वह उस पानी से हाथ-पैर धोकर ही घर में प्रवेश करता है। उसके घर में प्रवेश करने के बाद घर का मुखिया पूजा घर के द्वार पर पूजा करता है। पूजाघर के द्वार के सामने के के स्थान को गोबर से लीपकर पवित्र करने के बाद उस स्थान पर सखुआ की पत्ती पर अरवा चावल रखकर मुरगे को चराया जाता है। इसके बाद पूर्वज देवता के नाम पर हंड़िया का तपान चढ़ाया जाता है। इसके बाद लाल रंग के मुरगे को हाथ से मारकर बलि दी जाती है। इसके बाद पूजा संपन्न होती है। बलिदान किए गए मुरगी-मुरगे का गोश्त महिलाएँ नहीं खाती हैं।